नमामि गंगे की खुली पोल, गंगा जल ना तो पीने योग और ना ही नहाने के काबिल /

*यूपी -उन्नाव जहाँ एक तरफ देश की मोदी सरकार व प्रदेश की योगी सरकार नमामी गंगे के तहत गंगा सफाई को ले कर तरह-तरह के अभियान चलाती न?र आ रही है तो वहीं गंगा सफाई एवं गंगा में मोक्ष की डुबकी लगाते व खुले में घूम रहे अवारा/गंदे जानवरों को ले कर मौजूदा सरकार के सारे दावे अब हवा हवाई साबित होने लगे हैं। जबकि अधिकतर अभियान अब सिर्फ कागजों में ही फर्राटे भरते न?र आ रहे हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं उन्नाव?ले की कोतवाली गंगाघाट क्षेत्र के मिश्रा घाट, गंगा घाट, बालू घाट से निकलने वाली जीवनदायिनी गंगा की और वहीं घाट पर खुलेआम घूम रहे गंदे जानवरों की।आपको बता दें उन्नाव ?िले के गंगा घाट से निकलने वाली गंगा नदी भारत के 11 राज्यों में आबादी के 40 प्रतिशत लोगों को पानी उपलब्ध कराती है। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत की जीवनरेखा भी मानी जाती है परंतु अब गंगा दुनिया की छठी सबसे प्रदूषित नदी बन गई है। वहीं लोगों को मोक्ष दिलाने वाली गंगा का पानी प्रदूषण के कारण काला प? रहा है। गंगा में प्रदूषण का एक प्रमुख कारण इसके तट पर निवास करने वाले लोगों द्वारा नहाने, कप? धोने, सार्वजनिक शौच की तरह उपयोग करने, व खुले में घूम रहे अवारा मवेशि भी एक खास वजह है जो गंगा में प्रदूषण के स्तर को और बा रहा है। *या क्षेत्र के घाटों पर फैली जगह-जगह गंदी के स्तर में कोई कमी?* सच्चाई तो यह है कि इस सबके बावजूद भी न तो गंगा नदी के प्रदूषण में कमी दृष्टिगोचर हुई और ना ही घाटों पर और न ही क्षेत्रों में। योजनाएँ तो अच्छी हैं परन्तु जब तक इन योजनाओं का वास्तविक रूप से सही मायनों में क्रियान्वयन नहीं किया जाता तब तक इनका कोई प्रभाव दिखाई देना मुश्किल है। जनता भी इस विषय पर जागृत हुई है। इसके साथ ही धार्मिक भावनाएं आहत न हों इसके भी प्रयत्न किये जा रहे हैं। इतना सब कुछ होने के बावजूद गंगा के अस्तित्व पर संकट के बादल छाए हुए हैं। अब देखना ये है कि क्या नगर पालिका उन्नाव?ले में बने घाटों पर व पुराने गंगा पुल के नीचे गंगाघाट पर खुले में घूम रहे आवारा एवं पालतू मवेशियों के मालिकों पर कार्यवाही करेंगे या फिर होली के सुभ अवसर पर अपनीअपनी जेबें गरम कर प्रधानमंत्री के नमामी गंगे अभियान को ठेंगा दिखाते रहेंगे।